जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह