मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ज़ब्त-ए-गिर्या
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में