दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

लाल-ओ-गुहर से भी उस की दहलीज़ का पत्थर अच्छा था

बारिश धूप की बात जुदा थी ला-महदूद मसाफ़त में

नंगे सर पर जैसा भी था गुम्बद-ए-बे-दर अच्छा था

किस लहजे किन लफ़्ज़ों में शहकार-ए-अज़ल की बात करूँ

दुनिया भर के फ़न-पारों से ख़ाक का पैकर अच्छा था

चमक-दमक के मक्र से निकले कर्ब के बंधन टूट गए

शाम-ए-जुदाई के महताब से सुब्ह का अख़्तर अच्छा था

जाने किस लालच में आ कर सर का साया बेच दिया

मेंह में भीगे याद आया तिनकों का छप्पर अच्छा था

पलकों से हर ज़ख़्म सिया था इक अनजाने मोहसिन ने

संग-ज़नों की नगरी में भी कोई रफ़ू-गर अच्छा था

'रासिख़' सोंधी मिट्टी की ऐवानों में महकार कहाँ

रौज़न रौज़न झाँक के देखा कच्चा ही घर अच्छा था

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In Hindi By Famous Poet Rasikh Farani. is written by Rasikh Farani. Complete Poem in Hindi by Rasikh Farani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.