धुँद में लिपटे हुए मंज़र बहुत अच्छे लगे

धुँद में लिपटे हुए मंज़र बहुत अच्छे लगे

टिमटिमाती रौशनी में घर बहुत अच्छे लगे

ज़िंदगी के रास्तों पर रेंगते लोगों के बीच

सर उठाते बोलते कुछ सर बहुत अच्छे लगे

बर्फ़-ज़ारों से उतरते झूमते दरियाओं में

पानियों को रोकते पत्थर बहुत अच्छे लगे

आज भी बाक़ी हैं जिन से इस नगर की रौनक़ें

दाएरों के बीच वो मेहवर बहुत अच्छे लगे

ज़िंदगी तेरी अना को रौंद कर आते हुए

बादशाह-ए-वक़्त को लश्कर बहुत अच्छे लगे

मान कर भी तुम ने हम को उम्र भर माना नहीं

क्या हुआ है आज हम मर कर बहुत अच्छे लगे

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In Hindi By Famous Poet Ravi Kumar. is written by Ravi Kumar. Complete Poem in Hindi by Ravi Kumar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.