छुप जाएँ कहीं आ कि बहुत तेज़ है बारिश
ये मेरे तिरे जिस्म तो मिट्टी के बने हैं
Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
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आवाज़ के पत्थर जो कभी घर में गिरे हैं
आशियाँ ढूँढती है
एक मशवरा
क़तरा क़तरा तिश्नगी
चक्खोगे अगर प्यास बढ़ा देगा ये पानी
इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ
ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी