पसीने पसीने हुए जा रहे हो
ये बोलो कहाँ से चले आ रहे हो
हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो
बुरी किस की तुम को नज़र लग गई है
बहारों के मौसम में मुरझा रहे हो
ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यूँ अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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ये हक़ीक़त है कि होता है असर बातों में
ख़ंजर से करो बात न तलवार से पूछो
रुस्वाई तो वैसे भी तक़दीर है आशिक़ की
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं
गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजिए
इतना तो हुआ ऐ दिल इक शख़्स के जाने से
गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे
मैं न पीता तो तिरा लिख्खा ग़लत हो जाता