इक अजब कैफ़ियत-ए-होश-रुबा तारी थी

इक अजब कैफ़ियत-ए-होश-रुबा तारी थी

क़र्या-ए-जाँ में किसी जश्न की तय्यारी थी

सर झुकाए हुए मक़्तल में खड़े थे जल्लाद

तख़्ता-ए-दार पे लटकी हुई ख़ुद्दारी थी

ख़ून ही ख़ून था दरबार की दीवारों पर

क़ाबिज़-ए-तख़्त-ए-विरासत की रिया-कारी थी

एक साअत जो तिरी ज़ुल्फ़ के साए में कटी

हिज्र बर-दोश ज़मानों से कहीं भारी थी

और सब ठीक था बस हम से भुलाई न गई

तेरे ख़ामोश रवय्ये में जो बे-ज़ारी थी

इक क़यामत थी कि रुस्वा सर-ए-बाज़ार थे हम

और फिर उस की वो तशवीश भी बाज़ारी थी

तेरे महकूम तिरे हाशिया-बर-दारों की

सिर्फ़ वर्दी ही नहीं सोच भी सरकारी थी

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In Hindi By Famous Poet Sarwar Arman. is written by Sarwar Arman. Complete Poem in Hindi by Sarwar Arman. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.