हर मुसाफ़िर तलाश करता है
अपनी मंज़िल को शाम से पहले
आरज़ू करवटें बदलती है
ज़िंदगी के क़याम से पहले
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
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Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
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Rahat Indori
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ए'तिबार
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को
मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम
ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
ये कैसी बे-क़रारी सुनने वालों के दिलों में है
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
एक वहशत है रहगुज़ारों में
यास
औरत