निकलने वाले न थे ज़िंदगी के खेल से हम

निकलने वाले न थे ज़िंदगी के खेल से हम

कि चैन खींच के उतरे थे ख़ुद ही रेल से हम

रहा नहीं भी वो करता तो मसअला नहीं था

फ़रार यूँ भी तो हो जाते उस की जेल से हम

सुख़न में शो'बदा-बाज़ी के हम नहीं क़ाइल

बंधे हुए हैं रिवायात की नकेल से हम

जिसे भी देखो लुभाया हुआ है दुनिया का

सो बच गए हैं मियाँ कैसे इस रखेल से हम

अगर ये तय है कि फ़रहाद-ओ-क़ैस मुर्दा-बाद

तो बाज़ आए मोहब्बत की दाग़-बेल से हम

अकेले रहते तो शायद न देखता कोई

सितारा हो गए इक रौशनी के मेल से हम

हम ऐसे पेड़ बस इतनी सी बात पर ख़ुश थे

कि बेल हम से लिपटती है और बेल से हम

ख़ुदा ने क़ार-ए-फ़लाकत में हम को झोंक दिया

बिगड़ गए थे सुहूलत की रेल-पेल से हम

(538) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shozeb Kashir. is written by Shozeb Kashir. Complete Poem in Hindi by Shozeb Kashir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.