और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में

और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में

पेच ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम अभी बाक़ी हैं

इक सुबू और कि लौह-ए-दिल-ए-मय-नोशाँ पर

कुछ नुक़ूश-ए-सहर-ओ-शाम अभी बाक़ी हैं

ठहर ऐ बाद-ए-सहर उस गुल-ए-नौ-रस्ता के नाम

और भी शौक़ के पैग़ाम अभी बाक़ी हैं

ऐ हरीफ़ान-ए-सुबू गोश-बर-आवाज़ रहो

दामन-ए-वही में इल्हाम अभी बाक़ी हैं

तूल खींच ऐ शब-ए-मय-ख़ाना कि सब कार-ए-सियाह

ब-हमा लज़्ज़त-ए-इक़दाम अभी बाक़ी हैं

और अभी रौंदा नहीं ऐ कफ़-ए-पा-ए-तहक़ीक़

दिल में सौ तरह के औहाम अभी बाक़ी हैं

ऐ सही क़द तिरी निस्बत से सब ऊँची क़द्रें

बावजूद-ए-रविश-ए-आम अभी बाक़ी हैं

हम में कल के न सही 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' 'ज़फ़र'

आज के 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' अभी बाक़ी हैं

(632) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sirajuddin Zafar. is written by Sirajuddin Zafar. Complete Poem in Hindi by Sirajuddin Zafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.