फिर ज़ोर दिखा
पतझड़ की हवा
आ मेरे बदन को चूम ज़रा
मैं इक ताज़ा
धानी पता
इस मौसम में हर इक से जुदा तन्हा तन्हा
एक तंज़ की सूरत रख़्शंदा
और बाक़ी सब मंज़र भूरा पतझड़ की हवा!
आ मुझ को भी ख़ाकिस्तर कर
या मुझ से मिल कर अब तू भी धानी हो जा
Allama Iqbal
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देख के मुझ को हँस देता है
अगर मैं हँस पड़ूँ
कोई भी बात न थी वारदात से पहले
लहू-रंग सय्याल रौशन भँवर
सफ़ेद घोड़े पर सवार अजनबी
जहाँ-दार जितनी भी साज़िश करेगा
वो आज मुझ से जब मिली तो धुँद छट गई
तुझ में सब मंज़र महफ़ूज़
तेरी याद में रोते रोते तुझ जैसा हो जाएगा
अभी तक साँस लम्हे बुन रही है
नया हुक्म-नामा