रऊनतों में न इतनी भी इंतिहा हो जाए

रऊनतों में न इतनी भी इंतिहा हो जाए

कि आदमी न रहे आदमी ख़ुदा हो जाए

उसी के पास हो सब इख़्तियार बोलने का

और उस के सामने हर शख़्स बे-सदा हो जाए

घिरे हुए हैं अजब अहद-ए-बे-यक़ीनी में

ख़बर नहीं कि कहाँ किस के साथ क्या हो जाए

कहाँ कहाँ से उठाए सरों की फ़स्ल कोई

तमाम शहर ही जब दश्त-ए-कर्बला हो जाए

अब इस से बढ़ के तिरे साथ क्या मोहब्बत हो

मैं तुझ को याद करूँ और सामना हो जाए

तअल्लुक़ात में गुंजाइशें तो होती हैं

ज़रा सी बात पे क्या आदमी ख़फ़ा हो जाए

हम अहल-ए-हर्फ़ बड़े साहब-ए-करामत हैं

हमारे हाथ में पत्थर भी आइना हो जाए

हम इक इशारे से रुख़ मोड़ दें हवाओं का

नज़र करें तो समुंदर में रास्ता हो जाए

कभी तो मंज़िल-ए-सुब्ह-ए-यक़ीं मिले 'आरिफ़'

कहीं तो ख़त्म गुमानों का सिलसिला हो जाए

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In Hindi By Famous Poet Syed Arif. is written by Syed Arif. Complete Poem in Hindi by Syed Arif. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.