साया-ए-ज़ुल्म सर-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा होता है

साया-ए-ज़ुल्म सर-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा होता है

जब भी परचम शब-ए-यलदा का खुला होता है

जानते भी हैं कि है ज़ुल्म की बाला-दस्ती

ये भी कहते हैं कि बंदों का ख़ुदा होता है

रात-भर जागने वालों ने बताया है हमें

रात-भर शहर का दरवाज़ा खुला होता है

वही परकार-ए-जफ़ा और वही क़िर्तास-ए-वतन

दायरा जब्र का हर सम्त खिंचा होता है

अब तो ये हाल हुआ है कि हर इक रस्ते पर

राह रोके हुए इक राह-नुमा होता है

निस्बत-ए-अहद-ए-गुज़िश्ता से ब-क़ौल-ए-'ग़ालिब'

रोज़ इस शहर में इक हुक्म नया होता है

सब समझते हैं 'मुनीर' और कहे जाते हैं

कुछ समझ में नहीं आता है कि क्या होता है

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In Hindi By Famous Poet Syed Muneer. is written by Syed Muneer. Complete Poem in Hindi by Syed Muneer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.