क्या बूद-ओ-बाश पूछो हो पूरब के साकिनो
हम को ग़रीब जान के हँस हँस पुकार के
दिल्ली जो एक शहर था आलम में इंतिख़ाब
रहते थे मुंतख़ब ही जहाँ रोज़गार के
उस को फ़लक ने लूट के बरबाद कर दिया
हम रहने वाले हैं उसी उजड़े दयार के
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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तुम रंग हो तुम नूर हो तुम शीशा हो तुम जाम
कभी नर्मी कभी सख़्ती कभी उलझन कभी डर
चार गंजे एक दावत में जमा जब हो गए
यूज़ करते हैं मुसलसल मेक-अप का डब्बा रोज़ क्यूँ