फिर इस के ब'अद ये बाज़ार-ए-दिल नहीं लगना
ख़रीद लीजिए साहिब ग़ुलाम आख़िरी है
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मेरे आ'साब मोअ'त्तल नहीं होने देंगे
बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ
परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया
साँस के हम-राह शो'ले की लपक आने को है
बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया
आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया
रात को जब याद आए तेरी ख़ुशबू-ए-क़बा
ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी
मकीं जब नींद के साए में सुस्ताने लगें 'ताबिश'
घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा