शब की शब कोई न शर्मिंदा-ए-रुख़स्त ठहरे
जाने वालों के लिए शमएँ बुझा दी जाएँ
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1549) Peoples Rate This
अजब सौदा-ए-वहशत है दिल-ए-ख़ुद-सर में रहता है
अगर यूँही मुझे रक्खा गया अकेले में
मुझे रस्ता नहीं मिलता
हम जुड़े रहते थे आबाद मकानों की तरह
तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप
बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है
दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता
अब अधूरे इश्क़ की तकमील ही मुमकिन नहीं
मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है
उन आँखों में कूदने वालो तुम को इतना ध्यान रहे
टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है
ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं