एक मिश्अल थी बुझा दी उस ने
फिर अंधेरों को हवा दी उस ने
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पाँव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं
एक ख़ुदा पर तकिया कर के बैठ गए हैं
दिल में जो बात है बताते नहीं
लोगों ने बहुत चाहा अपना सा बना डालें
बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब
फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं
ये क़ैद है तो रिहाई भी अब ज़रूरी है
दिन गुज़रते हैं गुज़रते ही चले जाते हैं
किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही
उतरे थे मैदान में सब कुछ ठीक करेंगे
कुछ अपना पता दे कर हैरान बहुत रक्खा