साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे
दरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1008) Peoples Rate This
मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ
इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त
रूह को क़ालिब के अंदर जानना मुश्किल हुआ
कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा
कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी
इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक
जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं
जो गुज़रता है गुज़र जाए जी
कभी सोचा है मिट्टी के अलावा
दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया