आओ आज हम दोनों अपना अपना घर चुन लें
तुम नवाह-ए-दिल ले लो ख़ित्ता-ए-बदन मेरा
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे
अपने वजूद से परे अब
क़दम क़दम पे नया इम्तिहाँ है मेरे लिए
अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ
सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में
इतना यक़ीन रख कि गुमाँ बाक़ी रहे
अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे
मैं तुझ को जागती आँखों से छू सकूँ न कभी
बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ
वो शख़्स क्या है मिरे वास्ते सुनाएँ उसे
वो निशाना भी ख़ता जाता तो बेहतर होता
वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा