अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ
नशा उतरने से पहले मिरी शराब में आ
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1085) Peoples Rate This
मैं तुझ को जागती आँखों से छू सकूँ न कभी
बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ
वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा
उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा
वो क़यामत थी कि रेज़ा रेज़ा हो के उड़ गया
अना रही न मिरी मुतलक़-उल-इनानी की
आओ आज हम दोनों अपना अपना घर चुन लें
अपने वजूद से परे अब
अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे
इतना यक़ीन रख कि गुमाँ बाक़ी रहे