बिछड़ के तुझ से न देखा गया किसी का मिलाप
उड़ा दिए हैं परिंदे शजर पे बैठे हुए
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कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है
कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक
चल दिया वो देख कर पहलू मिरी तक़्सीर का
ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा
हम बहर हाल दिल ओ जाँ से तुम्हारे होते
जो मह ओ साल गुज़ारे हैं बिछड़ कर हम ने
इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
कुछ हिज्र के मौसम ने सताया नहीं इतना