इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा
मैं नहीं तो कोई तुझ को दूसरा मिल जाएगा
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फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर
तअल्लुक़ अपनी जगह तुझ से बरक़रार भी है
आया हूँ संग ओ ख़िश्त के अम्बार देख कर
क्यूँ परखते हो सवालों से जवाबों को 'अदीम'
किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया
सदाएँ एक सी यकसानियत में डूब जाती हैं
मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक
लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं