अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तिरे नाम से पहले पहले
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'मीर' के मानिंद अक्सर ज़ीस्त करता था 'फ़राज़'
ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर
अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे
वहशतें बढ़ती गईं हिज्र के आज़ार के साथ
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
'फ़राज़' तर्क-ए-तअल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं
ईद-कार्ड