चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
पलट के देखा तो बैठे हैं नक़्श-ए-पा की तरह
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2912) Peoples Rate This
सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना
नामा-ए-जानाँ
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
क्यूँ न हम अहद-ए-रिफ़ाक़त को भुलाने लग जाएँ
कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे