किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक
देखना अब के मिरा दोस्त कमाँ खेंचता है
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हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो
हम को उस शहर में तामीर का सौदा है जहाँ
जब तुझे याद करें कार-ए-जहाँ खेंचता है
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी
हर तरह की बे-सर-ओ-सामानियों के बावजूद
तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
हो दूर इस तरह कि तिरा ग़म जुदा न हो