तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम
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अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
पहले पहले हवस इक-आध दुकाँ खोलती है
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है
हमें भी अर्ज़-ए-तमन्ना का ढब नहीं आता
ऐ मेरे सारे लोगो
शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ
बन-बास की एक शाम
वापसी