ये उदासी का सबब पूछने वाले 'अजमल'
क्या करेंगे जो उदासी का सबब बतलाया
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कुछ कहना चाहते थे कि ख़ामोश हो गए
जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा
दुश्वार है इस अंजुमन-आरा को समझना
वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी
ज़िंदगी हम से चाहती क्या है
ग़म सभी दिल से रुख़्सत हुए
ठहर गया है दिल का जाना
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
दीवार याद आ गई दर याद आ गया
बदल जाएँगे ये दिन रात 'अजमल'
और तो ख़ैर क्या रह गया