ज़िंदगी हम से चाहती क्या है
चाहती क्या है ज़िंदगी हम से
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नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम
मिरी मिसाल तो ऐसी है जैसे ख़्वाब कोई
दुश्वार है इस अंजुमन-आरा को समझना
मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है
दीवार याद आ गई दर याद आ गया
वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी
ठहर गया है दिल का जाना
उस ने पूछा था क्या हाल है
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा
दिखा दूँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा