उस ने पूछा था क्या हाल है
और मैं सोचता रह गया
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मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है
दीवार याद आ गई दर याद आ गया
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा
वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी
ग़म सभी दिल से रुख़्सत हुए
हम अपने-आप में रहते हैं दम में दम जैसे
गुज़र गई है अभी साअत-ए-गुज़िश्ता भी
रह गया दिल में इक दर्द सा
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
दुश्वार है इस अंजुमन-आरा को समझना