खार Poetry

ज़ुहर-ए-आशिक़ी से डरता हूँ

दाऊद मोहसिन

सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में

अब्दुल्लाह कमाल

हम ही ज़र्रे रुस्वाई से

ए जी जोश

एंज़ाइटी

काशिफ़ रफ़ीक़

दिल्ली पे क़ुर्बान

इज़हार मलीहाबादी

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं

ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया

दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

जुनून-ए-इश्क़-ए-सर बेदार भी है

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

फैली हुई है सारी दिशाओं में रौशनी

ज़ीशान साजिद

ज़िंदगी ख़ार-ज़ार में गुज़री

ज़रीना सानी

ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे

ज़मान कंजाही

धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक

ज़हीर अहमद ताज

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

ज़हीर काश्मीरी

गुमान तक में न था महव-ए-यास कर देगा

ज़फ़र कलीम

ये ज़मीन आसमान का मुमकिन

ज़फ़र इक़बाल

उठ और फिर से रवाना हो डर ज़ियादा नहीं

ज़फ़र इक़बाल

जल्वा अफ़रोज़ है कअ'बे के उजालों की तरह

यज़दानी जालंधरी

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

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