आंख Poetry

हिज्र

अज़ीमुद्दीन अहमद

मैं लौह-ए-अर्ज़ पर नाज़िल हुआ सहीफ़ा हूँ

अली अकबर अब्बास

न सारे ऐब हैं ऐब और हुनर हुनर भी नहीं

फ़रहत अली ख़ान

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

लापता

मुबश्शिर अली ज़ैदी

शबाब आ गया उस पर शबाब से पहले

ए जी जोश

किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना

महमूद शाम

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे

महमूद शाम

इश्क़ को आँख में जलते देखा

नजमा शाहीन खोसा

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

ढोल वाला

बुशरा सईद

मोहब्बत पर यक़ीं था जब

हमीदा शाहीन

मोहब्बत ख़्वाब जैसी है

फ़ाख़िरा बतूल

किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

अश्क गिरने की सदा आई है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई

ज़ुहैर कंजाही

घर नहीं बस्ती नहीं शोर-ए-फ़ुग़ाँ चारों तरफ़ है

ज़ुबैर शिफ़ाई

ज़िंदगी जिन की रिफ़ाक़त पे बहुत नाज़ाँ थी

ज़ुबैर रिज़वी

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

रात फिर दर्द बनी

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें

ज़ुबैर रिज़वी

कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा

ज़ुबैर रिज़वी

दिल को रंजीदा करो आँख को पुर-नम कर लो

ज़ुबैर रिज़वी

दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं

ज़ुबैर रिज़वी

साफ़ आईना है क्यूँ मुझे धुँदला दिखाई दे

ज़ुबैर फ़ारूक़

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