आंख Poetry (page 2)

वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए

ज़ुबैर अली ताबिश

सफ़र मुझ पर अजब बरपा रही है

ज़िया ज़मीर

जीने में आसानी रख

ज़िया ज़मीर

अब इस का चारा ही क्या कि अपनी तलब ही ला-इंतिहा थी वर्ना

ज़िया जालंधरी

कसक

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच

ज़िया जालंधरी

अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई

ज़िया जालंधरी

नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं

ज़िया फ़तेहाबादी

मिरी आँखों में जो थोड़ी सी नमी रह गई है

ज़िया फ़ारूक़ी

इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं

ज़ेहरा निगाह

मेरा ज़ाइक़ा

ज़ीशान साहिल

इसी दर से इसी दीवार से आगे नहीं बढ़ता

ज़िशान मेहदी

कहाँ बशारत-ए-फ़स्ल-ए-बहार लाई थी

ज़िशान इलाही

ग्लैडिएटर

ज़ीशान हैदर

दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए

ज़ीशान अतहर

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी

ज़ेब ग़ौरी

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो

ज़ेब ग़ौरी

हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है

ज़ेब ग़ौरी

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

ज़ेब ग़ौरी

गुल-पोश बाम-ओ-दर हैं मगर घर में कुछ नहीं

ज़ौक़ी मुज़फ्फ़र नगरी

फ़िल्मी इश्क़

ज़रीफ़ जबलपूरी

न आँसुओं में कभी था न दिल की आह में है

ज़मीर काज़मी

मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा

ज़मान कंजाही

रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने

ज़काउद्दीन शायाँ

ख़ाक हम मुँह पे मले आए हैं

ज़काउद्दीन शायाँ

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