गिरफ्तार Poetry

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर

बिमल कृष्ण अश्क

जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

मैं जब भी तिरे शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार से निकला

ज़िया फ़ारूक़ी

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

नौ-गिरफ़्तार-ए-क़फ़स हूँ मुझे कुछ याद नहीं

ज़हीर देहलवी

भूल बैठा था मगर याद भी ख़ुद मैं ने किया

ज़फ़र इक़बाल

हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं

यूसुफ़ ज़फ़र

हर लहज़ा मिरी ज़ीस्त मुझे बार-ए-गराँ है

यूसुफ़ तक़ी

सहने को तो सह जाएँ ग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ तक

यावर अब्बास

मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा

यगाना चंगेज़ी

क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ

यगाना चंगेज़ी

तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

वक़ार ख़ान

इस तरह से कश्ती भी कोई पार लगे है

वामिक़ जौनपुरी

जो अपने जीते-जी को कुएँ में डुबोइए

वलीउल्लाह मुहिब

फिर आई फ़स्ल-ए-गुल ऐ यार देखिए क्या हो

वली उज़लत

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

वाली आसी

जो गिरफ़्तार तुम्हारा है वही है आज़ाद

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

आइना मिलता तो शायद नज़र आते ख़ुद को

तौसीफ़ तबस्सुम

इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है

तनवीर अंजुम

हर तरफ़ हश्र में झंकार है ज़ंजीरों की

तअशशुक़ लखनवी

महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे

तअशशुक़ लखनवी

अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं

तअशशुक़ लखनवी

क्या भरोसा है उन्हें छोड़ के लाचार न जा

सय्यद सग़ीर सफ़ी

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