गिरफ्तार Poetry (page 3)

हम कि इंसान नहीं आँखें हैं

शहज़ाद अहमद

उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी

शहज़ाद अहमद

सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो

शहज़ाद अहमद

कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे

शहज़ाद अहमद

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

शाहिद कमाल

दश्त-ए-वहशत को फिर आबाद करूँगा इक दिन

शाहिद कमाल

यारो नहीं इतना मुझे क़ातिल ने सताया

शाह नसीर

जेहल को इल्म का मेआ'र समझ लेते हैं

शायर लखनवी

ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम

मोहम्मद रफ़ी सौदा

मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

ग़ुंचे से मुस्कुरा के उसे ज़ार कर चले

मोहम्मद रफ़ी सौदा

दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश

मोहम्मद रफ़ी सौदा

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

सरवत हुसैन

ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले

साक़ी फ़ारुक़ी

जो तेरे दिल में है वो बात मेरे ध्यान में है

साक़ी फ़ारुक़ी

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

सलीम कौसर

कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे

सलीम कौसर

आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है

सलीम कौसर

इतनी काविश भी न कर मेरी असीरी के लिए

सलीम अहमद

जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए

सलीम अहमद

कुछ तो रंगीनी-ए-अफ़कार खुले

सैफ़ुद्दीन सैफ़

क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

जागा है कच्ची नींद से मत छेड़िए उसे

सैफ़ सहसराम

एक तस्वीर-ए-रंग

साहिर लुधियानवी

ज़ुल्फ़ तेरी हुई कमंद मुझे

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले

सादिक़

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

मेरे अफ़्कार ने जिस शय से जिला पाई है

रियासत अली ताज

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