क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते

क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते

ज़िंदाँ में चुप रहे तो सर-ए-दार बोलते

घर घर यहाँ था गोश-बर-आवाज़ देर से

आती सदा तो सब दर-ओ-दीवार बोलते

होता तुम्हारे ख़ून का दरिया जो मौजज़न

तूफ़ाँ समुंदरों में ब-यक-बार बोलते

देता तुम्हारा नुत्क़ दहाई तो फ़ितरतन

लौह-ओ-क़लम के बाम से फ़नकार बोलते

तुम बोलते अगर तो तुम्हारी निदा के साथ

बस्ती के सारे कूचा-ओ-बाज़ार बोलते

अब ख़ल्वतों में शोर मचाने से फ़ाएदा

था हौसला तो बर-सर-ए-दरबार बोलते

दस्त-ए-ख़िज़ाँ था ख़ाना-बर-अंदाज़ जिस घड़ी

क्यूँ गुंग थे चमन के परस्तार बोलते

सूरज ने कितने जिस्म जलाए हैं राह में

इतना तो ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार बोलते

लाता वफ़ा की जिंस जो बाज़ार में कोई

बोली ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़-ए-ख़रीदार बोलते

'ज़ुल्फ़ी' कली कली में मचलता नया लहू

आता वो सैल-ए-रंग कि गुलज़ार बोलते

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In Hindi By Famous Poet Saif Zulfi. is written by Saif Zulfi. Complete Poem in Hindi by Saif Zulfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.