चंद्रमा Poetry

दूसरा जन्म

बलराज कोमल

शाइ'र की इल्तिजा

फ़ज़लुर्रहमान

बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए

अख़्तर सईद ख़ान

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

मोहब्बत अब नहीं होगी

मुनीर नियाज़ी

किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं

तेरी नज़रों से यार उतर जाऊँ

इस चश्म-ए-सियह-मस्त पे गेसू हैं परेशाँ

फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

सिलसिला-दर-सिलसिला जुज़्व-ए-अदा होना ही था

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

पेड़ों की घनी छाँव और चैत की हिद्दत थी

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

क़ुर्बतों के ये सिलसिले भी हैं

ज़िया शबनमी

हम

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

मैं जब भी तिरे शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार से निकला

ज़िया फ़ारूक़ी

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

कैसी ज़मीं सुकून कहाँ का कहाँ की छाँव

ज़िशान इलाही

दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए

ज़ीशान अतहर

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

नक़्श-ए-तस्वीर न वो संग का पैकर कोई

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

ज़िंदगानी की हक़ीक़त तब ही खुलती है मियाँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ग़ज़ल के शानों पे ख़्वाब-ए-हस्ती ब-चश्म-ए-पुर-नम ठहर गए हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

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