चंद्रमा Poetry (page 24)

नहीं होने का ये ख़ून-ए-जिगर बंद

इमदाद अली बहर

नफ़्स-ए-सरकश को क़त्ल कर ऐ दिल

इमदाद अली बहर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

यारों की हम से दिल-शिकनी हो सके कहाँ

इमाम बख़्श नासिख़

जान हम तुझ पे दिया करते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का

इमाम बख़्श नासिख़

तुम्हारे जाते ही हर चश्म-ए-तर को देखते हैं

इमाम अाज़म

मस्जिद-ए-अहमरीं

इलियास बाबर आवान

शहर इल्म के दरवाज़े पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गली-कूचों में हंगामा बपा करना पड़ेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

नाकामी

इफ़्तिख़ार आज़मी

एहसास

इफ़्तिख़ार आज़मी

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

इदरीस बाबर

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

सब मुतमइन थे सुब्ह का अख़बार देख कर

हुसैन ताज रिज़वी

इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस

हुसैन सहर

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

यूसुफ़-ए-सानी

हिमायत अली शाएर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

दोनों उसी के बंदे हैं यकता है वो करीम

हातिम अली मेहर

बोसे लेते हैं चश्म-ए-जानाँ के

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

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