चंद्रमा Poetry (page 48)

क्या मसर्रत है पूछिए हम से

आसी रामनगरी

सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है

आसी ग़ाज़ीपुरी

क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी

आनिस मुईन

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

आल-ए-अहमद सूरूर

हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

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