मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई
मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई
था शोर जिस गली में वहाँ ख़ामुशी हुई
इक मैं ही तो नहीं हूँ परेशान-ओ-पुर-मलाल
ऐ शाम तेरे साथ भी अब के बड़ी हुई
महफ़ूज़ कर न पाएँगे दीवार-ओ-बाम-ओ-दर
मेरी फ़ुग़ाँ हुई कि वो तेरी हँसी हुई
दीवार-ए-जाँ गिरा के ही निकलेगी याद-ए-यार
एक मेख़ जैसे दिल के है अंदर गढ़ी हुई
खुलती ही जा रही है गिराँबारी-ए-जुनूँ
ज़ंजीर क्या है पाँव से मेरे बंधी हुई
अब देखिए तो क्या ये वही चश्म है 'नईम'
ज़म्बील थी कि ख़्वाबों से कोई भरी हुई
(2312) Peoples Rate This