काम Poetry

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तरखान

मुबश्शिर अली ज़ैदी

सलाम लोगो

हबीब जालिब

मैं बच गई माँ

ज़ेहरा निगाह

मस्जिद-ओ-मंदिर का यूँ झगड़ा मिटाना चाहिए

अख़्तर आज़ाद

सामाँ तो बेहद है दिल में

अनवर शऊर

सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर

फ़ारूक़ इंजीनियर

सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से

अजमल सिद्दीक़ी

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं

वरुन आनन्द

न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

बेचैनी

दौर आफ़रीदी

उर्दू की शोहरा-ए-आफ़ाक़ वेब-साइट रेख़्ता की इल्मी-ओ-अदबी ख़िदमात पर मंज़ूम तअस्सुरात

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

अलाव

बलराज कोमल

स्कूल

अख़्तर हुसैन जाफ़री

नूर अँधेरे की फ़सीलों पे सजा देता हूँ

ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम

सर्द आहों ने मिरे ज़ख़्मों को आबाद किया

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रात गुज़री न कम सितारे हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

अमीर-ए-शहर की नेकी

ज़ुबैर रिज़वी

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