ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम
राह-ए-तलब की मंज़िल-ए-आख़िर जुनूँ नहीं
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निगाहों से ना-आश्ना चंद जल्वे
अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ
कली की ख़ू है बहर-हाल मुस्कुराने की
शौक़ कितने फ़रेब देता है
बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
बसर करे जो मुजाहिदाना हयात उसे दाइमी मिलेगी
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना