अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी
शबनम है कि रोया करती है बादल हैं कि बरसा करते हैं
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ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है
तू ने वो सोज़ दिया है कि इलाही तौबा
नाहीद ओ क़मर ने रातों के अहवाल को रौशन कर तो दिया
कली की ख़ू है बहर-हाल मुस्कुराने की
मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ
क़फ़स भी है यहाँ सय्याद भी गुलचीं भी काँटे भी
ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश