काम Poetry (page 27)

अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक

इफ़्तिख़ार नसीम

तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक

इफ़्तिख़ार नसीम

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता

इदरीस बाबर

बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं

इबरत बहराईची

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

तबीअत इन दिनों औहाम की उन मंज़िलों पर है

हुमैरा रहमान

मादर-ए-वतन का नौहा

हिमायत अली शाएर

चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब

हिमायत अली शाएर

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

मुमकिन ही नहीं कि किनारा भी करेगा

हिलाल फ़रीद

आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता

हिलाल फ़रीद

मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना

हीरा लाल फ़लक देहलवी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना

हज़ीं लुधियानवी

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