काम Poetry (page 25)

करूँ शिकवा न क्यूँ चर्ख़-ए-कुहन से

रजब अली बेग सुरूर

हमें हमारी बीवियों से बचाओ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

चार बजे

राजा मेहदी अली ख़ाँ

'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद

राज कुमार सूरी नदीम

दुआ ने काम किया है यक़ीं नहीं आता

राज कुमार क़ैस

न नींद आँखों में बाक़ी न इंतिज़ार रहा

रईस सिद्दीक़ी

तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते

रईस सिद्दीक़ी

खोने की बात और न पाने की बात है

रईस सिद्दीक़ी

सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से

रईस फ़रोग़

किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ

रईस फ़रोग़

राज़-ए-गिरफ़्तगी न असीर-ए-लहन से पूछ

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी

राहुल झा

कुछ इस अदा से मोहब्बत-शनास होना है

राहुल झा

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

जूही का पौदा

राही मासूम रज़ा

ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में

राही फ़िदाई

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं

इरफ़ान सत्तार

ओस से भरा गिलास

इक़तिदार जावेद

मैं ख़ून बहा कर भी हुआ बाग़ में रुस्वा

इक़बाल साजिद

ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा

इक़बाल साजिद

कल शब दिल-ए-आवारा को सीने से निकाला

इक़बाल साजिद

कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया

इक़बाल कौसर

इक लौ थी मिरे ख़ून में तहलील तो ये थी

इक़बाल कौसर

सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है

इक़बाल कैफ़ी

वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ

इक़बाल अशहर

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

तुम्हारे हाथों की उँगलियों की ये देखो पोरें ग़ुलाम तीसों

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

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