और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

सुब्ह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का

झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल

शक्लें देख के सौदे करना काम है इन बंजारों का

अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग

तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का

जिस जिप्सी का ज़िक्र है तुम से दिल को उसी की खोज रही

यूँ तो हमारे शहर में अक्सर मेला लगा निगारों का

एक ज़रा सी बात थी जिस का चर्चा पहुँचा गली गली

हम गुमनामों ने फिर भी एहसान न माना यारों का

दर्द का कहना चीख़ ही उठो दिल का कहना वज़्अ' निभाओ

सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इज़्ज़त-दारों का

'इंशा' जी अब अजनबियों में चैन से बाक़ी उम्र कटे

जिन की ख़ातिर बस्ती छोड़ी नाम न लो उन प्यारों का

(1040) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Aur To Koi Bas Na Chalega Hijr Ke Dard Ke Maron Ka In Hindi By Famous Poet Ibn E Insha. Aur To Koi Bas Na Chalega Hijr Ke Dard Ke Maron Ka is written by Ibn E Insha. Complete Poem Aur To Koi Bas Na Chalega Hijr Ke Dard Ke Maron Ka in Hindi by Ibn E Insha. Download free Aur To Koi Bas Na Chalega Hijr Ke Dard Ke Maron Ka Poem for Youth in PDF. Aur To Koi Bas Na Chalega Hijr Ke Dard Ke Maron Ka is a Poem on Inspiration for young students. Share Aur To Koi Bas Na Chalega Hijr Ke Dard Ke Maron Ka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.