बादल Poetry

रोने वालों ने तिरे ग़म को सराहा ही नहीं

बिमल कृष्ण अश्क

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से

अजमल सिद्दीक़ी

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

ऐ लाहौर

जीलानी कामरान

मोहब्बत अब नहीं होगी

मुनीर नियाज़ी

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

साफ़ आईना है क्यूँ मुझे धुँदला दिखाई दे

ज़ुबैर फ़ारूक़

टाइपिस्ट

ज़िया जालंधरी

तुलूअ'

ज़िया जालंधरी

सँभाला

ज़िया जालंधरी

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

कसक

ज़िया जालंधरी

इम्कान

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

चाँद ही निकला न बादल ही छमा-छम बरसा

ज़िया जालंधरी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

हम लोग जो ख़ाक छानते हैं

ज़ेहरा निगाह

कैसी ज़मीं सुकून कहाँ का कहाँ की छाँव

ज़िशान इलाही

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

ढला न संग के पैकर में यार किस का था

ज़ेब ग़ौरी

वो हो कैसा ही दुबला तार बिस्तर हो नहीं सकता

ज़रीफ़ लखनवी

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