बादल Poetry (page 12)
जब तिलिस्म-ए-असर से निकला था
हामिद जीलानी
इक रोज़ जो गुलशन में वो जान-ए-बहार आए
हामिद इलाहाबादी
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
हैदर अली आतिश
पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है
हैदर अली आतिश
ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए
हैदर अली आतिश
मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया
हैदर अली आतिश
जौहर नहीं हमारे हैं सय्याद पर खुले
हैदर अली आतिश
दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी
हैदर अली आतिश
दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया
हफ़ीज़ जौनपुरी
मेरी शाएरी
हफ़ीज़ जालंधरी
वो अब्र जो मय-ख़्वार की तुर्बत पे न बरसे
हफ़ीज़ जालंधरी
मस्तों पे उँगलियाँ न उठाओ बहार में
हफ़ीज़ जालंधरी
जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ
हफ़ीज़ जालंधरी
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी
फ़स्ल-ए-गुल आई उठा अब्र चली सर्द हुआ
हबीब मूसवी
लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले
हबीब मूसवी
दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस
हबीब मूसवी
ख़ुद पे वो फ़ख़्र-कुनाँ कैसा है
हबाब हाश्मी
दिए से यूँ दिया जलता रहेगा
गुलज़ार बुख़ारी
एक दौर
गुलज़ार
बिजली चमकी तो अब्र रोया
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
न मिरा ज़ोर न बस अब क्या है
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ
ग़ुलाम मौला क़लक़
समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को
ग़ुलाम हुसैन साजिद
नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को
ग़ुलाम हुसैन साजिद
मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का
ग़ुलाम हुसैन साजिद
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