बादल Poetry (page 10)

रात की सारी हक़ीक़त दिन में उर्यां हो गई

रौनक़ रज़ा

गुमाँ हद्द-ए-नज़र तक क्या था लेकिन क्या नज़र आया

रौनक़ नईम

चाक दामन भी हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह

रऊफ़ यासीन जलाली

शराब-ए-नाब का क़तरा जो साग़र से निकल जाए

रशीद लखनवी

बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी

रशीद लखनवी

अगर दिला ग़म-ए-गेसू-ए-यार बढ़ जाता

रशीद लखनवी

आने को नज़र में मिरी सौ फ़ित्ना-गर आए

रसा रामपुरी

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से

रसा चुग़ताई

सौदा-ए-सज्दा शाम-ओ-सहर मेरे सर में है

रंजूर अज़ीमाबादी

तमाम रास्ता फूलों भरा है मेरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

नासेहा फ़ाएदा क्या है तुझे बहकाने से

रजब अली बेग सुरूर

मैं संगलाख़ ज़मीनों के राज़ कहता हूँ

राज नारायण राज़

हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में

रईस फ़रोग़

दिल की बर्बादी के आसार अभी बाक़ी हैं

राही शहाबी

नक़ाब चेहरे से उस के कभी सरकता था

इरफ़ान अहमद

चैत का फूल

इक़तिदार जावेद

ज़बानों पर नहीं अब तूर का फ़साना बरसों से

इक़बाल सुहैल

तुझ से यूँ यक-बार तोड़ूँ किस तरह

इंशा अल्लाह ख़ान

पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल गए पर हिजाब बाक़ी है

इंशा अल्लाह ख़ान

काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी

इंशा अल्लाह ख़ान

है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए

इंशा अल्लाह ख़ान

लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक

इनाम-उल-हक़ जावेद

पड़ता था इस ख़याल का साया यहीं कहीं

इनाम नदीम

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

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