जल्वा-नुमाई बेपरवाई हाँ यही रीत जहाँ की है
कब कोई लड़की मन का दरीचा खोल के बाहर झाँकी है
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फ़र्ज़ करो
लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए
कल हम ने सपना देखा है
देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
एक बार कहो तुम मेरी हो
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई
अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें
सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके
इक साल गया इक साल नया है आने को
ये सराए है