जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या
Allama Iqbal
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Jaun Eliya
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Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
एक से एक जुनूँ का मारा इस बस्ती में रहता है
सब माया है
'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या
लोग पूछेंगे
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन
राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा
और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले